Wednesday, December 19, 2012


कहाँ थी माँ शेराँ वाली जब दिल्ली में इतना घृणित काण्ड हो रहा था
उठो...जागो....अभी भी वक़्त है
अंधविश्वासों ..... अंधी श्रधाओं...
पाखंडी धर्मों ....... से कोइ सुधार नहीं होने वाला

अगर मंदिर जाने से कोई धार्मिक हो सकता तो दुनिया न जाने कितनी बार धार्मिक बन गयी होती
जितने मन्दिर......... मस्जिद............ गुरुद्वारे............. मत.............मठ...............
आज इस दुनिया में हैं पहले कभी नहीं थे
और जितनी अधिक अधार्मिक दुनियां आज है इतनी अधार्मिक भी कभी नहीं थी
इसका सीधा सा अर्थ है
या तो ये धर्म हमें अधार्मिक बना रहे हैं ..............
या वास्तव में ये सच्चे अर्थों में सही धर्म नहीं हैं

इस लिए आवाहन है मेरा सभी से

आओ ऐसे धर्म...समाज की सृजना करें
जो सही मायनों में धार्मिक हो .......पवित्र हो

Tuesday, December 11, 2012

जीवन ................एक प्रश्न




एक दिन सुबह सैर को जा रहा था कि
अजीब मंजर नज़र आया 

एक वृक्ष की डाली पर बैठी कोयल की 
जीवन व दुनिया भर की मिठास से भरपूर
कुहू-कुहू सुनायी दी 
मानो कह रही हो ...............................................

"जिन्दगी एक ख़ुशी का गीत है"


तभी मुझे एक कीड़ा दिखाई दिया 
जो अभी-अभी काफी प्रयत्न के बाद 
मिटटी के ढेर से बाहर निकला था 
उसके अंदाज़ ने मुझे बताया..................................

" परिश्रम का का ही दूसरा नाम जीवन है"

इस पर खिलती मुस्कराती उभरती कली ने
टिप्पणी दी.........................................................

"बिना उन्नति परिश्रम व्यर्थ है 
 सो निरंतर उन्नति ही जीवन है"


ऐसा सुनते ही एक चींटी जो अपने बच्चों 
के लिए कहीं से ढूँढ कर मिठाई का दाना 
ले जा रही थी, मायूसी से बोली ..............................

" जीवन एक निष्फल परिश्रम मालूम होता है"

अभी चींटी ने ये शब्द कहे ही थे 
की वर्षा शुरू हो गयी 
और बादलों की गर्जना से 
ये शब्द फूट पड़े .................................................

"जीवन आंसुओं का तालाब है"

इस पर  एक पक्षी ने आप्पति की 
जो  अपने घोंसले से निकल कर उड़ान 
भरने की तय्यारी कर रहा था 
उसके अनुसार ....................................................

"जीवन तो आज़ादी का नाम है"
*
*
*
*
*
*
शाम घिर आयी 
वृक्षों की डालियों पर से 
साँय-साँय कर गुज़रती समीर  
मानो कहने लगी .........................................................


"जीवन....चलने का नाम 
   चलते रहो सुबह-शाम "

रात बीत गयी 
परन्तु अपनी व्यथा के कारण
एक बीमार जो साड़ी रात सो नहीं पाया था 
सुबह होने पर कहने लगा ...............................................

"लगातार दुखों की इक कड़ी है जीवन......... बस"

नहीं ...............
तुम ग़लत कहते हो
एक तितली ने इठलाते हुए कहा..........................................

"जीवन तो सौन्दर्य है"

तभी घास पर बैठे एक युगल जोड़े में से 
प्रेमी ने अपनी प्रेमिका को जीवन की जो 
परिभाषा दी; कुछ इस प्रकार है ............................ 

"प्रेम.........प्रेम..............प्रेम
 बस प्रेम ही जीवन है"                                                                                

तो पास बैठा एक शराबी झट से पूछ बैठा 
"प्रेम................किसका प्रेम...........शराब का ......हा-हा-हा "
हाँ 
उसके लिए तो ...............................................................

" शराब ही जीवन है"

अभी ये बातें हो ही रहीं थीं 
कि पिंजरे में बन्द एक तोता 
चिल्ला उठा ...................................................................

" जीवन कुछ नहीं ............
   बस एक बन्धन है"

नहीं..........नहीं 
दुनिया का ठुकराया
एक व्यक्ति कहने लगा....................................................

"जीवन एक चलती छाया है.......बस"

मैं तो अभी सोच ही रहा था कि जीवन क्या है 
इतने में एक फिल्म के ये बोल जो शायद किसी 
के घर में चल रहे टीवी पर प्रसारित हो रहे थे 
उसके कानों में पड़े ..........................................................


"ज़िन्दगी इक सफर है सुहाना 
  यहाँ कल क्या हो किसने जाना'

मगर दो जून की रोटी न जुटा पाने के कारण
तीन दिन से भूखे "इक बेचारे" को ये सब 
बकवास लगी  और उसने अपने कटु अनुभव का परिणाम 
इस रूप में ब्यान किया .................................................

" जीवन तो एक संघर्ष है"

तो चोर बाज़ार के सरदार के मुंह से 
ठहाके के साथ जो शब्द निकले 
वो कुछ यूं थे........
संघर्ष होगा तुम जैसे भोले-भाले लोगों के लिए 
हमारे लिए तो ...........................................................

"धनोपार्जन ही जीवन है"

एक अमीरजादा जो  ...................................................

"जीवन फूलों की सेज़"
समझता था 
कहने लगा................................................................

"जीवन एक सुंदर वस्तू है............बस"


पास ही कहीं एक महात्मा का सत्संग चल रहा था 
महात्मा जी ने जीवन की व्याख्या करते हुए कहा ............

" जीवन एक अपूर्ण स्वप्न है"

तभी एक खुशकिस्मत 
जिसका स्वप्न पूरा हो गया था 
जिसे दस करोड़ की लाटरी लगी थी 
कहने लगा ..............................................................

"जीवन तो एक वरदान है"

इस पर एक दुखिया युवती 
जिसकी अस्मत राह चलते 
किसी सफेदपोश ने लूट ली थी 
रूंधे गले से बोली......................................................

"जीवन एक जिन्दा लाश है"

तभी किसी गुमनाम कोने से आवाज़ आई .....................

"जीवन एक सवाल है 
 जिसका जवाब है ..............मौत"

*
*
*
*
*
*
फिर तो मानो 
परिभाषाओं की बाढ़ सी आ गयी 
और प्रकृति का कण-कण 
मानो जीवन को परिभाषित करने को 
व्यग्र हो उठा 
वातावरण भारी हो गया 

"जीवन तड़प है............धोखा है...........विछोह है.........चाह है.......परिवर्तन है ......... आशा है.........ठोकर है...........क़ुरबानी है......इत्तेफाक है........राज़ है..........परीक्षा है......"

"जीवन इच्छाओं और आशाओं का ................ ललकार और साहस का.........सुखों और दुखों  आदि का समूह है ..........अमरत्व का शैशव है........ आत्मा के सफर का एक पड़ाव है.....आदि-आदि "

मेरे मन में भी आया की मैं भी 
जीवन को कोइ परिभाषा दूं .....

मैं सोचने लगा
और मुझे याद आने लगे .......

टालस्टाय,रूसो,ह्यूगो,मेनका 
और सुकरात आदि के शब्द  
जो उन्होंने जीवन के बारे में कहे थे 

यदि टालस्टाय के अनुसार ..................................
"जीवन आनंद है......मनोरंजन स्थल है......सेवा सदन है.............."
                                                                    
तो रूसो ने .........................................................
"जीवन को एक मज़ाक माना है ..........                                               

 वे समझते हैं ......
" जीवन परमात्मा का हमारे साथ किया गया मज़ाक है"

                                                                         


विक्टर ह्यूगो ....................................................
"जीवन को एक फूल का करार देते हैं ............जिसका मधु है प्रेम..........."

                                                                         


अगर मेनका ने ...................................................
"जीवन को काफ़ी लम्बा और भरा हुआ माना है ............."

तो सुकरात के अनुसार .........................................
"वास्तविक जीवन तो मृत्यू है........जिससे डरना बुज़दिली है............"

अभी तक मैं इन्हीं विचारों में उलझा हुआ
जीवन की सुलझी हुई, सरल, संक्षिप्त, स्पष्ट, 
सारगर्भित एवंम पूर्ण परिभाषा ढूँढने का प्रयास ही 
कर रहा था कि एक सज्जन 
"ज़िगर" की ये पंक्तियाँ गाते हुए 
मेरे पास से गुज़र गये ................................

" ज़िन्दगी इक हादसा है, और ऐसा हादसा .............
मौत से भी खत्म जिसका सिलसिला होता नहीं ......"
                                                             


ज़िगर का नाम आते ही मेरा कवि हृदय 
भी कल्पनाओं में खो गया ............
कहते हैं ...........
जहां ना पहुंचे "रवि".........वहां पहुंचे "कवि"
और दैवयोग से .
मैं "रवि" भी हूँ और "कवि" भी 
अत: मैंने निश्चय किया 
की जीवन की परिभाषा कहीं अन्यत्र 
खोजने की बजाए क्यूं ना जीवन के विभिन्न 
पहलुओं व आयामों में ही ढूंढी जाए .......
*
*
*
सफर अभी ज़ारी है......
जीवन क्या है ...........
अभी भी ...........प्रश्न बना हुआ है 

"एक शब्द में व्याख्या"
मैं कर नहीं पा रहा हूँ.........

सुझावों व् परिभाषाओं का स्वागत है 

Sunday, November 11, 2012

‎" !! धन्यवाद ज्ञापन ही

 "धन्य त्रियोदसी" 

यानी कि धनतेरस का उद्देश्य है. 

आज के दिन ही एक लम्बे निर्वासन के बाद भगवान् राम जो नैतिकता / 

मर्यादा के प्रतीक माने जाते हैं अपने स्थान पर वापस आये थे. इसे 

प्रतीकात्मक रूप से बोला जाए तो today after a long exile 

virtues ( नैतिकता / मर्यादा ) returned home. This story 

relates to Ram's exile and his return to Ayodhya. इस 

धन्यभाव के "धन्य" का अपभ्रंश हो कर "धन" होगया . अब धन प्रधान 

समाज में धनतेरस है. सरकारी दफ्तरों मैं , अदालत के पेशकारों मैं , 

सत्ता के दलालों मैं , साहूकारों की गद्दी पर धनतेरस है और असली 

भारत धन को तरस रहा है उसकी "धन तरस" है . !!---- धन्य त्रियोदसी 

की शुभ और मंगल कामना।"

Thursday, October 4, 2012

दुर्योधन कि माँ अंधी नहीं थी 

मगर उसे दिखाई नहीं देता था 

मनमोहन या...


दूसरे देश के ठेकेदार बहरे नहीं हैं 


मगर उन्हें सुनाई नहीं देता है 

इन दोनों दृष्टान्तों से सिद्ध होता है कि 


कुछ दिखाई या सुनाई न देने के लिए 


अँधा या बहरा होना जरूरी नहीं 

और सूरदास अँधा हो 


कर भी सब देख लेता था 

बूढा बाप बहरा होने पर भी 


बच्चों के दिल की बात सुन लेता है 

इस-से फिर सिद्ध होता है कि जरूरी नहीं कि 


अंधे या बहरे देख-सुन न पायें 

यह वास्तव में एक अद्भुत खेल है 


जिसे हम दिव्य भी कह सकते हैं 

दिव्य दृष्टि तथा सुनने की ख्वाहिश अंधे को 


जैसे दिखा देती है और बहरे को सुना देती है 

उसी तरह सच्चा प्यार देखता भी है सुनता भी है 


दिखाता भी है सुनाता भी है 


मगर उस-सब के लिए 


मन की आँखें और 


चित्त के कान होने बहुत जरूरी हैं

Friday, February 17, 2012


Koi to ho aisa



jo sirf mera ho...






Mango jo jaan to jaan de dein-ge


apna jo bana loge


to jahaan hum de dein-ge



Baton mei uski khushbu ho



Dil mei uske basera ho



Khushboo aisee ayyegee


hamaare labon ke alfaazon se


jo dfil to kya


aatma mein bas jaayegee

Chahe to chahat meri



mange to mohabbat meri




teri chaahat chaahne wala to koee


khudgarz hee hoga


teri mohabbat maangande wala


koee bhikharee se kum kya hoga



Hum to woh hain


jo chaahat teri ban jaayenge


maahoul aisa banaa dein-ge


ki


bin maage hi mohabbat teri paayenge




Wo chand ki chandni ho to



Chand sirf mera ho


Chand ki Chandani




to sooraj se liya udhaar hai




RAVI yaani SOORAJ hoon main


jo sirf tera pyaar hai
Wo din ki roshni ho to





Suraj sirf mera ho

Din kee roshni to mujha se yaani


sooraj sde hoti hee hai


per ik baat yeh bhee hai


ki


Roshnee hi roshnee ho jaayegi


bus


"Ishq ko dil main basaa ke dekhiye"




Wo phulon ki khushbu ho to



Ehsas sirf mera ho


khusboo hone se ehsaas ki kya zaroorat hai





khud ba khud naak main, nas nas main bas 





jaayege


maza to tab aata hai


jab..kuch bhee na ho


aue ehsaas ho jaaye


Wo raat ka ujala ho to



Chiragh sirf mera ho


raat ke ujaale main


chiraag kya dega...


zara sa hawa ka zhonka


us-ko bujha dega


hum jugnoon hain


jise na tel na baati chaahiye


hawa ke zhonke


hamain bujha na sakain


managna hee hai agar KHUDA se


tomaang lo hum ko


jeewan jag-mag...jag-mag ho jaayega




Wo ishq or mohabbat ho to


Dil sirf mera ho





Dil kya khaak ishq jkarega


jo pal mein toot jaata hai


ishq mohabbat...roohaaniyat ka


asal main


aatma se naata hai




Wo pani ka cheenta ho to


Dariya sirf mera ho




jal mein


MEEN pyasee..


mujhe dekh ke aawat haassi
katra-katra jal dariya ban jaata hai





jo samander mein sama ker khaare paani 





kehlaate hai


kisi ki pyaas naheen bujha paata hai



pyaar karna ho


chaahat paalni ho 


to "OO-S" ki paalo





kisi ne kahahai


boond jo ban gayee moti


woh oo-s kee boond


gar mil jaaye


to saara saagar


bhee


uske aage


nagganyein hai

Wo kismat ki lakeer ho t
o



Haath sirf mera ho.


Koi to ho asa....




haathon ki kakeeron mein


koee taqdeer kya likkega


hum woh hein jo apni marzi se


lakeerein bana sakte hain



VIKRMADITYA' ki terha


likhee lakeeron ko mitaa sakte hain


apani taqdeer khud banaa sakte hain


tum-ne haath hee maanga hai


saara ka saara zism


tum pe luta sakte hain